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Friday, September 13, 2024
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    गणेश प्रसाद वर्मा : शिक्षा व संस्कारों से समाज के विकास के पैरोकार  

    धर्मेंद्र कुमार

    रांची डोरंडा के निवासी आदरणीय गणेश प्रसाद वर्मा जी से जमशेदपुर में भारतीय स्टेट बैंक की एक शाखा में पहली मुलाकात हुई थी जहां वे एक बड़े अधिकारी के रूप में पदस्थापित थे. यह मुलाकात मेरे जीवन में काफी प्रभावी साबित हुई. गौर वर्ण, विशाल व्यक्तित्व,  प्रभावी वाणी और ओजपूर्ण विचार. अपने व्यक्तित्व ने इन विशेषताओं को समेटने वाले गणेश बाबू से पहली ही मुलाकात में ऐसी आत्मीयता हुई जो दिनों दिन बढ़ती चली गई. जब जमशेदपुर से उनका तबादला हो गया तब पर भी संबंध, संपर्क और संवाद पूर्व की तरह बना रहा. रिटायरमेंट के बाद जब उन्होंने अपने जीवन को स्वर्णकार समाज समेत सर्व समाज की सेवा को समर्पित किया तब हमारे सरोकार और प्रगाढ़ हो गए. उन दिनों जमशेदपुर को केंद्र बनाकर हम भी स्वर्णकार समाज के विकास के लिए जितना हो सकता था उतना करने के लिए प्रयत्नशील रहा करते थे. वैसे यह काम हम आज भी जारी रखे हुए हैं. उन दिनों स्वर्णकार समाज की एकजुटता व विकास के लिए की जा रही पहल में हमें गणेश बाबू का साथ मिला. आशीर्वाद भी मिला और अपेक्षित सहयोग भी, जो आज भी हमारे समाज के वैसे लोगों के लिए प्रेरणादायक संभल है जो समाज के लिए कुछ करना चाहते है, ं समाज के लिए कुछ सोचते रहते हैं या समाज के लिए कुछ देने का जतन करते रहते हैं.
     गणेश बाबू की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें सादर नमन के साथ हम अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. इस पावन अवसर पर उनके व्यक्तित्व से जुड़े कुछ पहलुओं को आप सभी से साझा करना चाहते हैं ताकि हमारी पीढ़ी समेत नई पीढ़ी भी उनके व्यक्तित्व से कुछ सीख सके. प्रेरणा ले सके और समाज हित में अपने कदम आगे बढ़ा सके.
    गणेश बाबू नैतिक मूल्यों के आधार पर ही आगे बढऩे के जबरदस्त पैरोकार थ. संघ की विचारधारा और उसके संस्कारों में पले बढ़े गणेश बाबू ने आजीवन उन मूल्यों को अपने साथ जोड़े रखा. उन पर अमल किया जो मूल्य उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं या विभिन्न गतिविधियों में मिले थे. जीवन के हर क्षेत्र में ईमानदारी, राष्ट्र व समाज के विकास में सहभागिता व सनातन संस्कारों को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका. इन्हीं बातों पर गणेश बाबू का फोकस रहता था.  
    वैसे गणेश बाबू का शिक्षा पर सर्वाधिक ध्यान और जोर रहता था. उनका स्पष्ट मानना  था कि शिक्षा के माध्यम से ही विकास का रास्ता खोला जा सकता है. समाज में पिछड़ापन को दूर किया जा सकता है और आम लोगों में चेतना का नया संसार किया जा सकता है. इसीलिए गणेश बाबू हर किसी से शिक्षा के प्रचार प्रसार पर ध्यान देने की बात करते थे. भारतीय स्टेट बैंक की गौरवमय सेवा से पूरी प्रतिष्ठा के साथ रिटायर होने के बाद शिक्षा दान को अपने जीवन का बड़ा संकल्प मान उसे अमलीजामा बनाने में लगे रहे. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने संघ में अपनी सक्रियता को और बढ़ाया. विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए आमजन के साथ संघ को जोडऩे का जतन करते रहे. स्वर्णकार समाज समेत सर्व समाज के उत्थान के लिए वे खुद तो लगे ही रहते थे. दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करते थे. यह उनके पुण्य प्रताप का ही प्रतिफल है कि उनके तीनों बच्चों, दोनों पुत्र  और एक पुत्री, ने उच्च शिक्षा ग्रहण की और आज तीनों सम्मान के साथ अपने पिता के मिले संस्कारों को आगे बढ़ाने में शिद्दत से जुटे हैं. उनके एक पुत्र डॉ आनंद हड्डी रोग विशेषज्ञ हैं. रांची में रहते हैं. मरीजों की सेवा को पहली प्राथमिकता मानते हैं. उनका यह भी मानना है कि पिताजी से मिले संस्कार ही उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं. कमाल की बात है यह कि डॉ. आनंद के पास आने वाला कोई भी मरीज खुश और संतुष्ट होकर ही लौटता है. गणेश बाबू के दूसरे पुत्र बैंक में है तो पुत्री कंप्यूटर शिक्षा ग्रहणकर बेंगलुरु में कार्यरत है.
    गणेश बाबू का परिवार समाज को यह संदेश दे रहा कि अपने पूर्वजों से मिले संस्कारों को हमें किस जतन के साथ आगे बढ़ाना चाहिए. डॉ आनंद याद करते हैं कि उनके पिताजी कितने कर्तव्यनिष्ठ और एकनिष्ठ थे. हर किसी के साथ दोस्ताना व्यवहार करते थे और घमंड को अपने पास फटकने नहीं देते थे. जरूरतमंदों की सेवा बिना किसी प्रचार-प्रसार के करने में उन्हें यकीन था. वे बच्चों को सस्कारी बनाने के हिमायती थे.  उनका मानना था कि अपने सनातन संस्कारों में ऐसी शक्ति जो बच्चों को संपूर्ण व्यक्तित्व का स्वामी बना सकती है. आवश्यकता सिर्फ इस शक्ति को आत्मसात करने व कराने की है.
    ऐसे सच्चे समाजसेवी गणेश बाबू को हमारा सादर नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि.

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