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Tuesday, November 5, 2024
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    आभूषण कारोबार व स्वर्णकार समाज के विकास के लिए ताउम्र निष्काम कर्मयोगी रहे गया के मदन बाबू

    धर्मेंद्र कुमार

    दुनिया में जो आया है उसे एक न एक दिन अपना नश्वर शरीर त्यागकर अनंत यात्रा पर प्रस्थान करना ही होता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दुनिया से विदा होने के बाद भी अपने कर्मों की बदौलत हर किसी के दिलों पर राज करते हैं. हमेशा याद आते हैं. अपनी स्मृतियों के जरिए प्रेरक शक्ति के रूप में हमेशा अपने होने का अहसास कराते हैं. आज इस शोक सभा में बिहार के गया निवासी मदन प्रसाद वर्मा को याद कर हमें कुछ ऐसा ही अहसास हो रहा है. मदन बाबू का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि वे जिससे मिलते थे उसे अपना बना लेते थे. चेहरे पर मुस्कान हमेशा छाई रहती थी. समाज की भलाई का भाव हमेशा जेहन में रहता था. कारोबार के क्रम में भी सांगठनिक विकास पर उनका फोकस ज्यादा रहता था. बिलकुल निष्काम कर्मयोगी की भांति वे अपने दायित्वों और सोच को अमलीजामा पहनाने में जुटे रहते थे.
    गया के प्रसिद्घ कारोबारी के रूप में तो उनकी पहचान थी ही अनेक संगठनों से गहरा जुड़ाव उनके सामाजिक दायित्व को बड़ा फलक प्रदान करती थी. बुलियन एसोसिएशन की गया इकाई का अध्यक्ष रहते उन्होंने संगठन को धारदार बनाया. अपने सदस्यों की आवाज को मुखरता प्रदान की. उनकी समस्याओं को अपनी समस्या माना और उसी भांति निराकरण के लिए जतन भी किया. यही कारण रहा कि जब मदन बाबू के निधन की खबर मिली तो गया की सर्राफा मंडी बंद नजर आई. आभूषण कारोबारियों ने अपने प्रतिष्ठानों को बंद कर शोक जताया और उनके आवास पर जाकर भावभीनी श्रद्घांजलि अर्पित की.
    आभूषण कारोबार से जुड़े विभिन्न मुद्दों और स्वर्णकार समाज के विकास पर उनसे कई दौर में बात हुई थी. आज सारी बातें खूब याद आ रही हैं. वे चाहते थे कि स्वर्णकार समाज के विकास के लिए ढांचागत पहल हो. एक ऐसा संगठन बने जो पवित्र भाव से समाज के अंतिम पंक्ति पर खड़े लोगों की मदद करे. गरीब परिवार के बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करे. नारी सशक्तिकरण के लिए भी काम करे. कुरीतियों पर प्रहार करने में तनिक भी संकोच नहीं करे और परिचय सम्मेलन के जरिए दहेज मुक्त शादी को बढ़ावा दिया जाए.
    आभूषण कारीगरों की दयनीय स्थिति से भी वे बहुत चिंतित रहते थे. पिछले कुछ वर्षों के दौरान आभूषण कारोबार के क्षेत्र में बड़ी कंपनियों और मशीनीकरण के प्रवेश से वे इसलिए चिंतित रहते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि इसका सबसे ज्यादा प्रभाव कारीगरों पर ही पड़ेगा. इसीलिए कारीगरों को आधुनिक तकनीक से लैस करने के वे हिमायती थे. उनका प्रयास रहता था कि सरकार प्रदत्त योजनाओं का लाभ कारीगरों को दिलाया जाए ताकि वे सशक्त बने.
    17 अगस्त 2022 को मदन बाबू परलोक गमन कर गए. वे अपने पीछे अनगिनत शुभचिंतकों और चाहने वालों को छोड़ गए हैं. अब ऐसे लोगों समेत समाज का यह दायित्व है कि मदन बाबू के सपनों को साकार करने का हर कोई संकल्प ले और जिससे जितना संभव हो सके इस दिशा में पहल करे. यही उनके लिए सच्ची श्रद्घांजलि होगी. इस दिवंगत पुरोधा को कोटि-कोटि प्रणाम व विनम्र श्रद्घांजलि.

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