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Saturday, September 14, 2024
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    निष्काम कर्मयोगी, समाजसेवी व सोनार संसार डॉट इन के कार्यकारी संपादक कपिलदेव ठाकुर नहीं रहे, मंगलवार को रांची में होगा अंतिम संस्कार

    धर्मेंद्र कुमार 

    रांची : इस खबर को आपसभी से साझा करने के लिए हिम्मत जुटानी पड़ी. कई घंटों तक की कवायद के बाद इस समाचार को आप तक पहुंचाने की मन: स्थिति बन पायी. खबर दुखद है. सहसा विश्वास करनेलायक नहीं. लेकिन कड़वी सच्चाई यही है कि अपने कपिलदेव ठाकुर (63) नहीं रहे. स्वर्णकार समाज के विकास के लिए सदा प्रयत्नशील रहनेवाले निष्काम कर्मयोगी. समाज को एकता के सूत्र में बांधने लिए प्रयासरत रहनेवाले मौन साधक. अपने समाज को तकनीक के साथ कदमताल कराने के लिए  ऑनलाइन ई पत्रिका सोनार संसार डॉट इन का शुभारंभ करानेवाले दूरदर्शी. 

    कोलकाता के अपोलो अस्पताल में ली अंतिम सांस 

    कपिलदेव बाबू ने सोमवार को तडक़े चार बजे कोलकाता के अपोलो अस्पताल मे अंतिम सांस ली. गत 15 दिसंबर 2022 को रांची के एक कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से भाग लेने के दूसरे ही दिन वे अचानक अस्वस्थ्य हो गये. करीब 95 दिनों तक जिंदगी की जंग लडऩे के बाद वे उस अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर रहे जहां से लौटकर न कोई आता है और न ही किसी तरह से संवाद की ही गुंजाइज छोड़ता है. 

    कपिलदेव बाबू का पार्थिक शरीर सोमवार रात तक कोलकाता से रांची पहुंच जाएगा. अंतिम संस्कार मंगववार को रांची के हरमू मुुक्तिधाम में कराने की तैयारी चल रही है. अंतिम यात्रा रांची स्थित आवास से निकलेगी.

     प्रतिभा, इच्छा शक्ति व परिश्रम के दम पर बनाया मुकाम 

    कपिल देव ठाकुर रामगढ़ हजारीबाग के कोयलांचल में जन्मे, पले और बढ़े थे, कॉलेज स्तर तक शिक्षा-दीक्षा भी वहीं पाई. पिता कोयलरी में बड़े अधिकारी थे. लेकिन इनका मन उनकी तरह अधिकारी न बनकर स्वरोजगार के जरिए समाज में मानक बनकर उभरना था. इसीलिए कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद अच्छी नौकरी का विकल्प त्याग इन्होंने कारोबार के क्षेत्र में कदम रखा. 

    रामगढ़-हजारीबाग के कोयलांचल में अमूमन हर नौजवान अगर कारोबार के क्षेत्र में उतरता है तो कोयला के क्षेत्र में अपनी किस्मत जरूर अपनाता है. असंख्य लोगों के लिए यह कोयला कोहिनूर भी साबित होता रहा है. 

    कोयला कारोबार के करियर की शुरुआत 

    युवा अवस्था में दहलीज रखने वाले कपिल देव ठाकुर ने तब कोयला के कारोबार से ही अपने करियर की शुरूआत की. लेकिन ये परंपरागत कारोबारियों से अलग हटकर रोजगार को अपनाना चाह रहे थे. इसीलिए कोयला बेचने अपना तरीका अख्तियार किया. प्रतिभाशाली थे ही, इच्छाशक्ति भी फौलाद की तरह थी और परिश्रम करने से भी कभी कोताही नहीं करते थे. लिहाजा दिन-रात की परवाह किए बगैर अपने मिशन में लग जाते थे. ईश्वरीय कृपा से बाजार का रूख भांपने में इन्हें कुछ ही दिनों में महारथ हासिल हो गई. इसीलिए पलक झपकते कोयला का सौदा कर अन्य कारोबारियों को भी अक्सर चौंका देते थे. कारोबार के प्रति जुनून का आलम यह था कि इतने सबेरे घर से निकल जाते थे जब दूसरे कारोबारी नींद के आगोश में स्वप्नलोक का विचरण कर रहे होते थे. फटाफट सौदा को अमलीजामा पहना कपिलदेव ठाकुर जब बुलेट मोटरसाइकिल से मुुनाफे के नोटों से जेब भरकर घर लौटते थे तब दूसरे कारोबारियों की जगने की सुबह होती थी. 

    बहुत कम समय में बना ली पहचान 

    कपिल देव ठाकुर का यह फंडा काम कर गया. बहुत ही कम समय में इन्होंने रामगढ़ कुजू हजारीबाग क्षेत्र में एक उभरते हुए कोयला कारोबारी की पहचान बना ली. इसीलिए तरक्की का रास्ता भी खुलता चला गया. कोयला आधारित उद्योगों में अपने कारोबार का विस्तार किया और बहुत ही कम समय में इसके लिए बड़े खिलाड़ी बन गए. 

    आप सोचते होंगे कि कपिल देव ठाकुर को सफलता पर सफलता मिलती कैसे गई? एक बार उनके सामने भी सवाल रखा गया था. चेहरे पर हमेशा मुस्कान रखने वाले ठाकुर यादों में खो गए और गंभीर भाव से बोले थे -कड़ी मेहनत के साथ परिवार का साथ काम आया. हमेशा अनुशासन और कठिन परिश्रम को काम का आधार बनाया. कारोबारी ईमानदारी के प्रति हमेशा अडिग रहा. पिता के संस्कारों और अपने कर्म की बदौलत आगे बढ़ता रहा. इस दौरान हमेशा प्रयास करता रहा कि अपने स्तर से इंसान, इंसानियत और समाज की भी सेवा होती रहे. यह संस्कार माता-पिता से विरासत में मिला था. कविदेव बाबू ने तब कहा था- इस संस्कार को आजीवन बढ़ाता रहूंगा. परिवार के बच्चों को भी इस संस्कार में ढालने के लिए हमेशा तत्पर रहता हूं. 

    हमेशा रही कुछ नया करने की ललक 

    कपिल देव ठाकुर ने बताया था कि बचपन से ही हमेशा कुछ नया करने की ललक रही. हमेशा चिंतन-मनन भी नई चीजों को लेकर करता रहता हूं. जब कॉलेज की पढ़ाई के बाद स्वरोजगार की इच्छा जताई थी तो बहुतों ने सलाह दी थी कि सोनार परिवार से आते हो तो सोना-चांदी का धंधा करो. लेकिन हमारे मन में निर्माण क्षेत्र में कुछ करने का भाव जगा था. धीरे-धीरे यह भाव पहले लक्ष्य और बाद में मजबूत इरादे में बदल गया. इसीलिए जब ईश्वर की कृपा से ठीक-ठाक संसाधन अपने पास हो गए तो निर्माण क्षेत्र में उतरने का फैसला किया. अपार्टमेंट या मॉल निर्माण की राह में आगे बढऩे का यही आधार रहा. 

    समाज के विकास को हमेशा करते रहे चिंतन -मनन 

    कपिवदेव बाबू स्वर्णकार समाज समेत सर्व समाज के विकास के हमेशा चिंतन मनन करते रहे. स्वर्णकार समाज के विकास के लिए वे समाज के लोगों की एकजुटता को पहली शर्त मानते थे. इसीलिए इसके लिए प्रयास भी करते थे. रांची में कई बार समाज के प्रबंध लोगों की जुटान कराये थे. राज्य के अलग-अलग हिस्सों में जाकर लोगों के मिलने का भी प्रयास करते थे. खुद प्रचार से दूर रहने की भरसक कोशिश करते थे. चाहते थे कि समाज के दूसरे लोग आए आएं. वे नींत का पत्थर बनकर समाज के भव्य भवन का सपना रखते हुए आगे बढ़ रहे थे.

    अभी सिर्फ इतना ही, कपिलदेव बाबू के जिंदगी के सफर में अनगिनत ऐसी बातें. घटनाएं या यादें हैं जिनको समय समय पर आस सभी के साथ साझा करते रहने का प्रयास होगा. 

    ईश्वर से कपिलदेव बाबू को अपने श्रीचरणों में स्थान देने की प्रार्थना करते हुए कलम को विराम देने की मजबूरी है. 

    दिवंगत आत्मा को कोटि कोटि प्रणाम व भावभीनी श्रद्धांजलि

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