आप जनता की जितनी सेवा करेंगे उतना ही आनंद मिलेगा, जितने लोगों में सुख बांटेंगे उतना ही नाम होगा.
झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिला अंतर्गत चांडिल में शिवम ज्वेलर्स का संचालन करने वाले गणेश वर्मा उपरोक्त मंत्र को अपना जीवन पथ बनाने के लिए निष्काम कर्मयोगी की भांति अग्रसर हैं.
गणेश वर्मा पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए कारोबार में सक्रिय रहते हैं. लेकिन उनका मन समाजसेवा में ही रमे रहता है. यह गुण उन्हें अपने पिता शंभूनाथ वर्मा और माता द्रक्षवाती देवी से मिले संस्कारों का ही प्रतिफल रहा कि ये बचपन से ही सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहने लगे थे. खेलकूद, नाटक मंचन जैसी गतिविधियों में बढ़चढ़ कर भाग लेने से उनका संपर्क भी बढ़ा और अनुभव का फलक भी. इसीलिए जब अपने सोनार समाज के पारंपरिक कारोबार को करियर बनाया तो पहले चरण में अपनी दुकान की विश्वसनीयता बढ़ाने पर ध्यान दिया. ग्राहकों की सेवा को ही अपना मूलमंत्र मानने वाले गणेश वर्मा का ईमानदारी के साथ कारोबार करने का तरीका लोगों को पसंद आया. इसी का नतीजा है कि उनका प्रतिष्ठान शिवम ज्वेलर्स एक प्रतिष्ठित स्वर्ण आभूषण प्रतिष्ठान के रूप में लोगों के बीच जाना जाता है.
लेकिन गणेश वर्मा के व्यक्तित्व का दूसरा पहलू उनकी समाजसेवा से जुड़ा है. शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर इनका विशेष ध्यान रहता है और सरस्वती शिशु मंदिर चांडिल के जरिए ये अपने शिक्षा मिशन को अंजाम दे रहे हैं. अभी ये इस संस्था के अध्यक्ष हैं.
श्री श्री सावंजनिक दुर्गा पूजा कमेटी, बजरंग दल अखाड़ा कॉलेज मोड़ चांडिल, चांडिल स्वर्णकार समाज, चांडिल बाजार समिति समेत विभिन्न संस्थाओं में अलग-अलग पद पर रहते हुए ये समाज को लेकर अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं.
कोरोना काल में गणेश वर्मा को भगवान ने जरूरतमंदों के लिए किसी दूत की मानिंद सक्रिय रखा. उन्होंने रसुनिया पंचायत को अपनी सेवा का क्षेत्र चुना और यहां के लोगों को चावल, दाल, तेल, हल्दी, नमक के अलावा साबुन, सेनेटाइजर, मास्क और दवा को भी उपलब्ध कराया. इन्होंने हर तरह का खतरा मोल लेते हुए भी कोरोना काल में लोगों के बीच जाकर उनकी मदद करने के काम को नहीं छोड़ा. यही नहीं बाहर से से आने प्रवासी मजदूरों के लिए भी इन्होंने भोजन एवं अन्य सामानों का इंतजाम कराया.
गणेश वर्मा नि:शक्तों को मदद कर परमसंतोष की अनुभूति करते हैं. इनका मानना है कि ईश्वर ने उन्हें जो कुछ दिया है उसमें से कुछ भागीदारी समाजसेवा में निभानी चाहिए तभी उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है. इसी भाव से प्रेरित होकर ये नि:शक्तों को जरूरत का सामान देते हैं. आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की बेटियों की शादी में सहयोगी बनते हैं. आर्थिक चुनौती का सामना करने वाले परिवारों में किसी की मृत्यु होने पर हर तरह से मदद को खड़ा रहते हैं.
शिक्षा को तरक्की का एकमात्र हथियार मानने वाले गणेश वर्मा इस कथन में अटूट विश्वास रखते हैं कि गरीबी में पैदा होना खराब नहीं है बल्कि गरीब रहते हुए मृत्यु को अंगीकार करना खराब होता है.
उनका सुदीर्घ अनुभव रहा है कि शिक्षा से ही गरीबी को दूर किया जा सकता है. इसीलिए वे पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ परिवारों को यथासंभव सहयोग देते हैं और समाज के अन्य लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं. प्रतिभा निखारने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले गणेश वर्मा ने नारी सशक्तिकरण को भी अपने सेवा मिशन से जोड़ा है. इसमें समाज सुधार की भावना भी निहित है. विधवा विवाह को बढ़ावा देने के पीछे उनका स्पष्टï मानना है कि यदि कोई विधवा दूसरी शादी करने को इच्छुक हो तो समाज को उसका पूरा साथ देना चाहिए क्योंकि इससे उसकी नई जिंदगी की शुरूआत होती है.
गणेश वर्मा नारी सशक्तिकरण के लिए एक ऐसा कोष निर्माण करने के हिमायती हैं जिससे गरीब परिवार की बेटियों की शादी कराई जा सके. बच्चियों को हुनरमंद बनाने में भूमिका निभाई जा सके और उनके प्रशिक्षण के लिए भी कोई काम किया जा सके.
समाज की तरक्की और एकजुटता के लिए इनका संवाद पर विशेष ध्यान रहता है. ये चाहते हैं कि जगह-जगह पर छोटे-छोटे समूह में ही मीटिंग आयोजित हो. भले ही उसकी अवधि मासिक या त्रैमासिक क्यों न रखा जाए. उनका मानना है कि लगातार संवाद जारी रखा जाए तो समाज में उत्पन्न होने वाले छोटे-मोटे विवादों का न सिर्फ समाधान खोजा जा सकता है बल्कि कटुता की भावना को भी समाप्त कर देने का आधार बन जाता है.
गणेश वर्मा की यह भी चाहत है कि आभूषण कारोबार से जुड़े लोगों और हस्तशिल्पियों की समस्याओं के निराकरण के लिए भी एक सशक्त संगठन रहे जो न सिर्फ विकास योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का मार्ग प्रशस्त करे बल्कि संकट या विपत्ति के समय भी किसी अभिभावक की तरह सहयोग समर्थन का कवच लेकर खड़ा मिले.
गणेश वर्मा यह भी चाहते हैं कि समाज का हर आदमी सनातन संस्कारों का वाहक बने. अपने माता-पिता और पूर्वजों से मिले संस्कारों को नई पीढ़ी में आगे बढ़ाये. बच्चों को धर्म के प्रति जोड़े, जागरूकत करे इससे कई तरह की कुरीतियों का अपने आप खात्मा हो जाएगा और एक संस्कारी नई पीढ़ी समाज को मिलेगी.