पटना : जाने-माने समाजसेवी और अपनी आध्यात्मिक चेतना से समाज में शिक्षा और सेवा के प्रति लोगों खासकर युवाओं में ललक पैदा करने का ताउम्र प्रयास करने वाले जगदीश प्रसाद का यहां निधन हो गया. वे 84 वर्ष के थे.
उनके निधन पर स्वर्णकार समाज की विभिन्न संस्थाओं समेत अन्य समाज और संगठनों ने भी गहरी शोक संवेदना जताई है. जगदीश प्रसाद का जन्म बिहार के खगडिय़ा जिले के सैदपुर गांव में 1 जनवरी 1939 को हुआ था. उन्होंने 19 जुलाई 2022 को पटना में अंतिम सांसद ली. कैलू प्रसाद और रसिया देवी के पुत्र के रूप में जन्में जगदीश प्रसाद ने मैट्रिक की परीक्षा खगडिय़ा से पास की. इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए वे टीएनबी कॉलेज भागलपुर गए. उसके बाद उनका दाखिला बीआईटी सिंदरी में हो गया.
बीआईटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने के बाद 1962 में उन्होंने पटना पॉलिटेक्निक कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में अपने करियर की शुरूआत की.
दो साल तक प्रोफेसरी करने के बाद उन्होंने बिहार सरकार में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के रूप में योगदान दिया.
अपनी लंबी सरकारी सेवा के दौरान वे अविभाजित बिहार के विभिन्न स्थानों पर पदस्थापित रहे. अपनी कर्मठता, ईमानदारी और नेतृत्व कौशल के बूते उन्होंने अपने हर दायित्व को बखूबी निभाया और विभाग में लोग उन्हें काफी प्रतिष्ठा देते थे.
1997 में अधिक्षण अभियंता पद से रिटायर करने के बाद जगदीश बाबू ने अपने जीवन को समाज-धर्म और आध्यत्म सेवा को समर्पित कर दिया.
देश के सभी प्रमुख तीर्थ स्थानों, ज्योर्तिलिंगों और शक्तिपीठों का वे हमेशा भ्रमण करते रहे. समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर उनका काफी जोर रहा. उनका मानना था कि नैतिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत व्यक्ति यदि शिक्षा को अंगीकार करेगा तो सफलता उसे अवश्य मिलेगी. वे हमेशा इसी सूत्र वाक्य पर समाजसेवा करते रहे कि शिक्षा ही विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकती है. इसलिए शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए.
इस काम में उन्हें अपनी धर्मपत्नी वीना प्रसाद का भरपूर सहयोग मिला. यह कहने में तनिक भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अगर वीना प्रसाद नहीं होतीं तो कामयाबी की इतनी बुलंदी तक जगदीश बाबू शायद नहीं पहुंच पाते.
धर्म के मार्ग पर चलकर आध्यात्म को गहराई से आत्मसात करने का ही नतीजा रहा कि उनके तीनों पुत्रों अनिल, अजय और राजेश भी सुयोग्य बनकर उभरे. बेटी अनिता कुमारी ने भी उच्च शिक्षा ग्रहण कर समाज में बेटियों के लिए मिसाल बनीं. इकलौते दामाद मिथिलेश कुमार फिलहाल झारखंड में जीएसटी विभाग में वरीय पद पर स्थापित हैं. उनके भीतर भी धर्म और आध्यात्म की चेतना को मजबूत करने में जगदीश बाबू का अहम योगदान रहा है.
शायद यही कारण है कि मिथिलेश कुमार उन्हें अपने गुरु जैसा मान-सम्मान और आदर देते रहे.
पटना में मां गंगा के पावन तट (गुलाबी घाट) पर पूरे विधि-विधान के साथ उनका अंतिम संस्कार संपन्न हुआ. इस महान विद्वान कर्तव्यनिष्ठ, गीता मर्मज्ञ एवं नारायण भक्त को अंतिम विदाई देने के लिए उन्हें चाहने वालों का हुजूम उमड़ा था.
84 वर्ष की आयु में समाज और परिवार की पूर्ण जिम्मेवारी को निभाते हुए किसी पर बिना बोझ बने उनका परलोक गमन उनके समाजसेवी व्यक्तिगत को रेखांकित करता है.
वे अपने पीछे ऐसे अनगिनत शिष्यों, शुभचिंतकों और मुरीदों को छोड़ गए हैं जो उनके ज्ञान, स्नेह व आध्यात्मिक सोच से काफी प्रभावित रहे और जीवन को बेहतर बनाने में अपनी भूमिका निभाई.
यही कारण रहा कि गुलाबी घाट पर उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे जगदीश बाबू के नहीं रहने से अपार कष्ठ व अधूरापन का अनुभव हो रहा है. अपनी सोच एवं प्रयास से उन्होंने अपने परिवार में उच्च श्रेणी के पदाधिकारियों एवं अभियंताओं की श्रृंखला स्थापित की. बल्कि स्वर्णकार समाज समेत अन्य समाज में भी ऐसे अनेक लोगों के लिए प्रेरणास्रोत रहे.
सोनार संसार डॉट इन जगदीश बाबू की महान आत्मा को शत-शत नमन करता है. नारायण उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें और इसकी हृदय से प्रार्थना है.