कपिल देव ठाकुर
रांची : राजनीति में अपने समाज का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मांग सोनार यानि स्वर्णकार समाज के लोग लंबे समय से करते आए हैं. इस मांग के पीछे ठोस व तार्किक आधार भी है. जनसंख्या, राजनीतिक सक्रियता और अपने सामाजिक सरोकार के बूते स्वर्णकार समाज की इस मांग को हर राजनीतिक दल द्वारा तवज्जो दी भी जानी चाहिए. लेकिन अभी तक स्वर्णकार समाज को राजनीति में वैसी प्रभावी दखल नहीं बन पाई है जैसी बननी चाहिए थी.
झारखंड में हालिया संपन्न त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में स्वर्णकार समाज के सियासी अरमानों पर पंख लगा दिए हैं. राज्य के अन्य हिस्सों खासकर रामगढ़, हजारीबाग, बोकारो, गिरीडीह और देवघर इलाकों में अनेक पंचायतों में स्वर्णकार समाज से आने वाले लोग विभिन्न पदों के लिए निर्वाचित हुए हैं. कोई अपनी पंचायत में वार्ड सदस्य बना है तो कोई मुखिया या उपमुखिया. किसी को पंचायत समिति सदस्य के रूप में जीत मिली है तो कोई प्रखंड प्रमुख बनने में सफल रहा है. जिलों में जिला परिषद के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की प्रक्रिया जारी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि 24 जिलों वाले झारखंड में जिला परिषद में भी स्वर्णकार समाज की उपस्थिति नजर आएगी.
यदि झारखंड के पंचायत चुनावों में स्वर्णकार समाज से आने वाले लोगों को मिली विजय पर गहरी नजर डाली जाए तो यह तथ्य काफी संतोष प्रदान कर रहा कि इन लोगों ने वैसी सीटों पर भी अपना परचम लहराया जहां स्वर्णकार समाज की आबादी अल्प संख्या में है. कहने का मतलब यह कि अपनी सेवा और जनता से संपर्क के बूते सफलता की यह कहानी लिखी गई. यानि सियासत के रास्ते स्वर्णकार समाज के लोग भी आगे बढ़ सकते हैं. जनता का समर्थन उन्हें हासिल हो सकता है. मतदाता उन्हें अपना प्रतिनिधि चुन सकते हैं. झारखंड के इस पंचायत चुनाव में इन बातों पर मुहर लगा दी.
इसलिए अब आगे देखने का समय है. स्वर्णकार समाज की नजरें विधानसभा और लोकसभा चुनाव पर टिकनी चाहिए. समाज से आने वाले लोग चाहे जिस पार्टी में सक्रिय हों चाहे जिस विचारधारा को आत्मसात करते हों उनसे समाज की एक अपेक्षा तो बनती ही है कि वे जहां भी रहें अपने समाज की उपस्थिति को मजबूती से दर्ज करें और हर मौके पर यह आवाज जरूर बुलंद करें कि राजनीतिक दलों द्वारा स्वर्णकार समाज को भी विधानसभा और लोकसभा के टिकट वितरण में समुचित प्रतिनिधित्व मिले.
लेकिन इतना भर से ही काम चलने वाला नहीं. वाजिब सियासी हक पाने के लिए आपसी एकजुटता सबसे जरूरी है. इसलिए तमाम मतभेदों को भुलाकर स्वर्णकार समाज की एकजुटता का हर स्तर से प्रयास हो. हर सदस्य अपने स्तर की भूमिका निभाए. सियासी जगत को यह संदेश जाए कि अपने राजनीतिक हक के लिए स्वर्णकार समाज भी एक्टिव हो गया है और उसकी अनदेखी भारी पड़ सकती है.
अगर ऐसा करने में हम सफल रहे तो यकीन मानिए कि 2024 में होने वाले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में हमारे समाज के भी नये चेहरे संसद या विधानसभा में दिखेंगे. एक बात और क्यों न अभी से स्वर्णकार समाज उन सीटों का चयन कर ले जहां से चुनाव लड़ा और जीता जा सकता है.यदि राजनीतिक दलों के स्तर से टिकट देने को लेकर स्वर्णकार समाज के प्रति कंजूसी की गई तो समाज को वैकल्पिक प्लान के साथ भी तैयार रहना होगा. तब सियासत में सक्रिय समाज के लोग ऐसा माहौल बनाए कि स्वर्णकार समाज से प्रत्याशी मैदान में उतर सकें. इसका एक फायदा यह होगा कि समाज की गोलबंदी को वोटबैंक में तब्दील कर वे सियासी दलों के साथ-साथ आम लोगों में भी यह संदेश देने में सफल रहेंगे कि स्वर्णकार जाति के पास भी मजबूत वोट बैंक है और वह किसी भी प्रत्याशी की जीत या हार का कारण बन सकता है.
तो अब देर किस बात की. झारखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को स्वर्णकार समाज के लिए सकारात्मक संदेश मानते हुए अभी से विधानसभा या लोकसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक शक्ति को प्रदर्शित करने की दिशा में पहल शुरू कर देनी चाहिए.