रांची। आज के समय में आभूषण कारोबार विभिन्न प्रकार के चुनौतियों से दो-दो हाथ कर रहा है. बदलते जमाने के साथ आभूषण निर्माण ने अत्याधुनिक मशीनों का इस्तेमाल जिस तरीके से होने लगा है उससे डिजाइन के स्तर पर तो चमत्कारीक नतीजे मिलने लगे है, लेकिन इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम आभूषण कारीगरों पर पड़ने लगा है. पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी समृद्ध विरासत को अपनी कला के जरीए आगे बढ़ा रहे इन कारीगरों की राह में अत्याधुनिक तकनीक व मशीनीकरण एक बड़ी चुनौती बन गयी है. अपनी बेहतरीन कला के जरीए ये आभूषण कारीगर ख्याति तो खूब पाते रहें हैं लेकिन जैसी आमदनी होनी चाहिए वैसी हो नहीं पाती. नतीजतन आर्थिक संकट से जूझना इनकी नियति बन चुकी है. यह भी उस स्थिति में जब उनके पास भरपूर क्षमता और सुदीर्घ अनुभव है. अब सोचने वाली बात यह है कि इस संकट से कैसे आभूषण कारीगरों को उबारा जाये? इनकी हितों की रक्षा कैसे की जाये. मशीनीकरण के चलते बेरोजगारी का दंश झेलने वाले इन कारीगरों को रोजगार कैसे मुहैया कराया जाये. निर्धनता के दलदल से निकाल कर इन्हें समृद्धि के राजपथ पर दौड़ाया कैसे जाये. सबसे पहले आभूषण उद्यमियों व कारोबारियों को इस दिशा में पहल कर सरकार के स्तर से संरक्षण सुनिश्चित करना होगा. समय की मांग है कि आभूषण कारीगारों को शिल्प कला को आधुनिक तकनीक का कवच प्रदान किया जाये. इसके लिए हर स्तर पर प्रशिक्षण की शुरूआत करानी होगी. अच्छा तो यह होगा की शिल्प कला में डिप्लोमा-डिग्री कोर्स की शुरूआत की जाये ताकि तकनीक से अपने को जोड़ सके. फिलहाल जो पूराने कारीगर हैं उनको इस तरह से दक्ष बनाया जाये ताकि वे खुद को प्रतिस्पद्धी बना सके इस क्रम में आटीआई या डिप्लोमा कोर्स में ऐसे कारीगरों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए और फीस समेत अन्य शुल्क में भी इन्हें राहत मिलनी चाहिए. केंद्र या राज्य सरकार के स्तर से चलायी जाने वाली रोजगार योजनाओं में कारीगरों को प्राथमिकता दिलाने की पहल करनी होगी ताकि उन्हें ऋ ण उपलब्ध हो सके. परांपरागत कारीगरों के लिए जमीन आवास और काम करने के शेड आदि के निर्माण के लिए भी सरकार के स्तर से मदद मिलनी चाहिए. कुछ कार्यशील पूंजी की व्यवस्था हो जाने पर यह कारीगर खुद को स्वालंबी बन सकेंगे.