रामेश्वर प्रसाद वर्मा
स्वर्णकार समाज की ओर से सियासी में वाजिब भागीदारी की मांग लंबे समय से की जाती रही है. इसको लेकर समाज के लोगों में भी धीरे-धीरे चेतना का संचार होता दिख रहा है. हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान इसका अक्स देखने को भी मिला था. उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में सियासी दलों के प्रत्याशी के रूप में स्वर्णकार समाज के चार दिग्गजों का विधायक बनना मामूली घटना नहीं है. इससे निश्चित रूप से आनेवाले समय में स्वर्णकार समाज के लोगों को सत्ता में भागीदारी देने के बारे में राजनीतिक पार्टियों को सोचना होगा.
उत्तर प्रदेश – उत्तराखंड के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि सत्ताधारी दलों ने विधानसभा चुनाव में स्वर्णकार समाज के चार प्रत्याशी उतारे. भाजपा के 1980 में अस्तित्व में आने के बाद से स्वर्णकार समाज के बारे में पार्टी का अबतक का यह सबसे बड़ा फैसला रहा. शायद ऐसा पहली बार हुआ कि एक राजनीतिक पार्टी ने किसी समाज के जितने प्रत्याशी उतारे हों वो सभी जीत गए हों. इनमें से तीन यानि 75 प्रतिशत प्रत्याशियों का यह प्रथम विस चुनाव था.
स्वर्णकार समाज के लिए यह पहला मौका था जब समाज के सैकड़ों लोगों ने विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड में उम्मीदवारी मांगी थी.
इन नतीजों ने साफ संकेत दे दिया है कि स्वर्णकार समाज जागो देश की राजनीति तुम्हें बुला रही है ।
आज उत्तराखंड की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस व उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा पुन: अपनी नीतियों की समीक्षा करके देखें कि आज का स्वर्णकार समाज जाग कर अंगड़ाई ले रहा है. इसकी ताजगी भरी उर्जा का सही इस्तेमाल और कौन पार्टी करेगी?
भारतवर्ष की सभी राजनीतिक पार्टियों को स्वर्णकार समाज की उर्जा के उचित प्रयोग का मास्टर प्लान तैयार करना चाहिए तथा स्वर्णकार समाज को आगे बढ़कर अपना हक छीनने के लिए कमर कस लेनी चाहिए.
इस तरह की चर्चा-परिचर्चा से हमें अपनी समस्याओं को समझने तथा उनके समाधान ढूंढने में सहायता मिलती है. अच्छा लगे तो आप भी इस परियोजना में मेरा साथ दें और यदि बुरा लगे तो मुझे दया पूर्वक क्षमा कर दें ।
सत्यमेव जयते