asd
Tuesday, November 19, 2024
More
    No menu items!

    Latest Posts

    एकजुटता से ही होगा स्वर्णकार समाज का उत्थान, हर किसी को लेना होगा दृढ़ संकल्प : राज कुमार गुप्ता

    राज कुमार गुप्ता झारखंड की राजधानी रांची की जानी मानी हस्ती. स्वर्णकार समाज की पहचान. लंबे समय से इनके मन में अकुलाहट रही है अपने समाज के लिए कुछ करने की. समय-समय पर पहल करते भी हैं. लेकिन अभी तक ऐसा हो नहीं सका है जैसा ये करना चाहते हैं या जैसी तस्वीर इनके जेहन में है. स्वर्णकार समाज-कारोबार की ऑनलाइन आवाज सोनार संसार डॉट इन से बातचीत में राजकुमार गुप्ता जी ने ने खुलकर अपने मन की बातों को रखा. प्रस्तुत है उन्हीं के शब्दों में संपादित अंश:

    देश का ऐसा कोई कोना नहीं होगा जहां स्वर्णकार समाज की उपस्थिति नहीं रहती हो. लेकिन कोई यह पूछे कि भारत में स्वर्णकारों की जनसंख्या क्या है? किस प्रांत या इलाके में स्वर्णकारों की कितनी आबादी निवास करती है? स्वर्णकारों की कितनी आबादी गरीबी रेखा के नीचे या गरीबी रेखा के ऊपर है? सरकारी नौकरियों में स्वर्णकारों की भागीदारी कितना प्रतिशत है? संसद या विधानसभाओं में यह हिस्सेदारी कैसी रही है? तो इन सवालों का जवाब देना अमूमन किसी के लिए भी लगभग असंभव सा होगा. क्योंकि इन सवालों का जवाब किसी को नहीं मालूम. दरअसल ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कभी भी किसी ने इन सवालों को पूछने-जानने की गंभीरता से आवश्यकता नहीं समझी और न ही इस संबंध में कोई प्रयास किया. यदि छोटे स्तर पर कहीं कोई थोड़ा बहुत प्रयास हुआ भी तो सिर्फ इसलिए कि अपने स्तर से संगठन बनाकर समाज में अपनी उपस्थिति को उल्लेखनीय बनाया जा सके.

    स्वर्णकार समाज की तरक्की के लिए यह जरूरी है कि समाज में अपनी आबादी की जानकारी की जाए। जरूरी आंकड़ों को एकत्र किया जाए तभी हम सरकार से अपना वाजिब हक मांग भी सकते हैं और पा भी सकते हैं. स्वर्णकार समाज की स्थिति पर गंभीर मंथन के बाद हमारा आंकलन यही है कि अपने समाज की दुर्दशा का मुख्य कारण सिर्फ यह रहा है कि स्वर्णकार समाज के सक्षम और प्रबुद्ध लोगों ने खुद को अपने कारोबार और व्यवसाय में ही व्यस्त रखा. छोटे-मोटे अपवादो की बात छोड़ दें तो आम तौर पर ऐसे लोग समाज-संगठन के लिए समय निकालने से परहेज ही करते रहे हैं. कभी किसी बैनर के तले एकाध छोटे-मोटे कार्यक्रमों में शिरकत कर आत्मसंतुष्टिï का अहसास कर लेते हैं और इस तरह से समाज और संगठन के प्रति अपने कर्तव्य का कर लेते हैं पालन.

    लेकिन विचारणीय सवाल यह है कि क्या इस तरह की सक्रियता से समाज का भला होता है? क्या किसी ने इस सवाल पर विचार किया है? देखने और सुनने में तो ऐसा भी आता है कि यदि अपने समाज का कोई व्यक्ति किसी सरकारी विभाग में महत्वपूर्ण पद पर है और समाज के किसी व्यक्ति का उससे कार्य पड़ता है तो सहयोग करने की बात तो दूर वह व्यक्ति समाज को एक तरह से उलझन में ही डाल देता है. काम तो नहीं ही करता है, कोई न कोई अड़ंगा भी लगा देता है. .

    आज तक स्वर्णकार समाज ने न तो अपने संख्या बल को लेकर सजगता दिखाई और न ही एकजुटता पर ही गौर किया. चलता है और चलता रहेगा के अंदाज में एक-एक दिन अपने मन के मुताबिक बीताने की प्रवृत्ति रही है स्वर्णकार समाज के लोगों की. लेकिन सवाल यह है कि ऐसा कब तक चलता रहेगा? समाज की मुख्य धारा में हम अपनी दमदार उपस्थिति कब दर्ज कराएंगे? वाजिब हक कब पाएंगे? गंभीर मंथन के बाद हमारा आकलन यही है कि यदि स्वर्णकार समाज में इसी प्रकार लोगों की दिनचर्या या सक्रियता चलती रही तो आगे चलकर हमारे समाज का नामोनिशान भी संकट में पड़ जायेगा. अन्य समाजों की निगाह में अभी भी स्वर्णकार समाज की कोई खास अहमियत नहीं. सरकार भी हमें हाथों हाथ लेने को उतावली नहीं दिखती और न ही राजनीतिक दलों में ही हमें मिलता है वाजिब मान-सम्मान.

    क्या आपने कभी सोचा है कि यह स्थिति क्यों है? इस दौर से स्वर्णकार समाज क्यों गुजर रहा है? इसका कारण यह है कि हम अपनी संख्या बल को समाज या सरकार के सामने प्रदर्शित ही नहीं कर पाए हैं. हम अपनी एकजुटता दिखाकर अपना हक मांग ही नहीं पाए हैं. जरा सोचिाए, जब हम अपनी ताकत का प्रदर्शन ही नहीं कर पाएंगे तो दूसरों को हमारी ताकत का बोध होगा कैसे? स्वर्णकार समाज के लोगों से हमारा विनम्र निवेदन है कि समाज और सरकार से अपना वाजिब हक पाने के लिए हर कोई अपने मन में विचार करे और एकजुटता का संकल्प ले. सुविचारित और सुनियोजित तरीके से एक ऐसा सिस्टम बनाया जाए जिससे हम अपने संख्या बल की आधिकारिक जानकारी देश-समाज के सामने रख सकें. इसके लिए यह भी जरूरी है कि अपने निजी कीमती समय में से कुछ समय समाज हित में भी लगाएं.

    यह काम युवा उत्साह और वरिष्ठ अनुभव के सम्मिश्रण से किया जा सकता है. समाज की इस ज्वलंत समस्या के समाधान के लिए जरूरी है कि इस समाज को जगाने के लिए युवा तबका उत्साह के साथ सामने आए और बुजुर्ग लोग अपने अनुभवों के आधार पर इस युवा उत्साह का मार्गदर्शन करे. हमारे लिए यह भी जरूरी है कि अपने व्यापार-कारोबार के साथ राजनीति और समाजसेवा में भी अपनी सक्रियता बढ़ाएं. गंभीरता से प्रयास शुरू करें तो देर-सबेर परिणाम अवश्य निकलेगा.

    तभी हमारी संख्या बल को देखकर राजनीतिक पार्टियां भी हमारी ओर देखेंगी और फिर सरकार की नजरें भी हम पर पड़ेंगी. दोनों के लिए हमें नजरंदाज करना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाएगा. और हम पाकर रहेंगे अपना वाजिब हक. कर सकेंगे तो संकल्प लीजिए हम होगे एकजुट. बनाएंगे संगठन. करेंगे एक दूसरे से संवाद. अपने संख्या बल को अधिकृत बनाने के लिए शुरू करेगे ठोस मुहिम. शुरुआत करके तो देखिए, मंजिल आपका स्वागत करने के लिए तैयार बैठी है.

    ( लेखक झारखंड की राजधानी रांची की अति प्रतिष्ठित रत्न व आभूषण प्रतिष्ठानों में से एक श्री सीताराम ज्वेलर्स के संचालक हैं)

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here

    Latest Posts

    Don't Miss