स्वर्णकार समाज के सदस्यों या आभूषण कारोबार से जुड़े आम लोगों से सिर्फ धारा-411 का जिक्र कर दीजिए, सामने वाले के शरीर के भीतर एक बार कंपकंपी तो छूट ही जायेगी। छूटे भी तो क्यों नहीं। भारतीय दंड संहिता की धारा-411 उनके गले की फांस जो बन
चुकी है।
चोरी के सामान की खरीद-बिक्री को रोकने और ऐसा करने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई के लिए बनी यह धारा आज जमशेदपुर झारखंड समेत पूरे देश के आभूषण कारोबारियों के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन चुकी है। कब कौन सा कारोबारी इस धारा की चपेट में आ जायेगा कहा नहीं जा सकता। पुलिस प्रशासन द्वारा इस धारा का अक्सर दुरुपयोग करने की बढ़ते उदाहरणों का नतीजा रहा है कि इसका दुरुपयोग रोकने के लिए कारोबारियों को अदालत की शरण तक जाना पड़ा है। मुख्यमंत्री से गुहार लगानी पड़ी है और प्रशासनिक आदेश भी जारी कराना पड़ा है। इतना कुछ होने के बावजूद परेशानी कम नहीं हुई है। जमशेदपुर समेत झारखंड में स्वर्णकार समाज को धारा 411 नामक फंदे से बिना किसी कारण फंसने से बचाने के लिए प्रयास जारी है।
क्या है धारा 411
भारतीय दंड संहिता में धारा 411 का प्रावधान किसी जाति या समाज विशेष को चोट पहुंचाने की नियत से नहीं बनाई गई है। इसका दुरुपयोग होने के कारण स्वर्णकार समाज के लोग इसे अपने अस्तित्व के लिए ही सबसे बड़ी चुनौती मानने लगे हैं। धारा 411 का अभिप्राय है कि चुराई गई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना कानून जुर्म है और इसमें सजा का प्रावधान है। यानि कोई दुकानदार किसी से आभूषण खरीदता है और वह चोरी का निकल जाता है तो पुलिस उक्त दुकान पर इसी धारा के तहत कार्रवाई करती है।
आमतौर पर इस धारा का दुरुपयेग ही हीता है। चूंकि सोनार निरीह प्राणी होता है और उसे सिर्फ अपने धंधे से मतलब होता है लिहाजा पुलिस बिना गहन जांच-पड़ताल के ही चोरी का माल खरीदने में दुकानदारों को फंसा देती है। सही है कि संगठन स्तर पर इसके खिलाफ आवाज बुलंद होती रही है। इसका दुरुपयोग रोकने के लिए प्रयास अभी भी जारी है। लेकिन विचारणीय प्रश्न यह भी है कि दुकानदारों को भी अपने स्तर से 411 के फंदे से दूर रहने के लिए सजग और सतर्क रहना होगा। संगठन तो अपना काम कर रहा है और करता ही रहेगा।
धारा 411 से बचने के टिप्स
इस प्रसंग में विचारणीय प्रश्न यह है कि कोई दुकानदार यह कैसे समझे कि वस्तु चोरी की है या साहुकारों की अर्थात स्वयं की। क्योंकि कोई ग्राहक आभूषण बेचने या गिरवी रखने के लिए दुकानदार के पास आता है तो अभी तक यह मान्य विधा नहीं निकली है जिससे जान लिया जाए कि आभूषण कैसा है चोरी का या स्वयं का। ऐसी परिस्थिति में दुकानदारों को धारा 411 के फंदे से बचने के लिए कुछ यूं करना होगा :-
टिप्स नंबर -1
अनजान, अज्ञात, नाबालिग या पागल सा दिखने वाले व्यक्ति से कोई वस्तु तब तक न खरीदें जब तक कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति आकर उसकी पहचान न कर दे। यानि वह प्रतिष्ठित व्यक्ति बेची जानी वाली सामग्री की गारंटी ले।
टिप्स नंबर -2
यदि कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति इस तरह के लोगों की पहचान सुनिश्चित कर देता है तब दुकानदार सामग्री को खरीद सकता है लेकिन जरूरी है कि बिक्री की रसीद पर दुकानदार संबंधित प्रतिष्ठित व्यक्ति का भी हस्ताक्षर करा ले।
टिप्स नंबर -3
जोड़े में बिकने वाली वस्तु अकेली न खरीदें। यानि एक कंगन, एक बाली, एक पायल, एक झुमका आदि को न खरीदें। यदि बेचने वाला यह प्रमाणिक कर दे कि पारिवारिक बंटवारे की स्थिति में उसे जोड़े में गहना नहीं मिला या जोड़े का एक भाग कहीं खो गया है तब इसकी खरीदारी की जा सकती है। लेकिन ग्राहक के इस कथन के समर्थन में दस्तावेजी प्रमाण या किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति की गारंटी अनिवार्य होनी चाहिए।
टिप्स नंबर -4
हर वस्तु को क्रय करने की रसीद बनाएं और विके्रता से स्वयं के होने के कागज पर हस्ताक्षर कराएं। किसी प्रकार का कानूनी विवाद होने पर विक्रेता के ही जिम्मेदार होने की बात भी रसीद में लिखी होनी चाहिए। इस रसीद को दुकानदार अपने पास रखे और जरूरत पडऩे पर उसका इस्तेमाल करे।
टिप्स नंबर 5
सर्वप्रथम अनजान व्यक्ति से आभूषण खरीद करते समय उस वस्तु के स्वयं के होने की परख करें। ऐसा करने के लिए उस ग्राहक को हल्का सा झटका जोर दें और कहें कि उसके द्वारा बेची जाने वाली वस्तु की कीमत बाजार की कीमत से बहुत कम दामों में बिकेगी। यदि विक्रेता कम कीमत पर भी बेचने के लिए तैयार हो जाता है तो समझ लिजिए कि दाल में कुछ काला है। ऐसी वस्तु किसी भी सूरत में न खरीदें।