धर्मेंद्र कुमार
इनसे मीलिए. नाम है बृजलता वर्मा (सोनी). महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में पिछले 34 साल से रह रही हैं. समाजसेवा को जीवन का ध्येय बनाकर लोगों की हरसंभव सहायता में दिनरात जुटी रहती हैं.
मध्य प्रदेश के भिंड मुरैना के एक कुलीन स्वर्णकार परिवार में जन्मीं बृजलता वर्मा की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा मुरैना में ही हुई. अपने पिता व अन्य परिजनों से माहौर क्षत्रिय स्वर्णकार महासंघ के बारे में बचपन से ही सुनती रहीं और संगठन की गतिविधियों के बारे में इन्हें जानकारी मिलती रही.
बचपन से ही पढ़ाई में खास ध्यान देने वाली बृजलता चाहती थी कि उनकी जैसी अन्य लड़कियां भी स्कूल-कॉलेज जाया करे. मां से सुन रखा था कि बालिका शिक्षा से ही समाज की आधी आबादी सबल होगी और कुरीतियों पर भी चोट पड़ेगी. इसीलिए शादी के बाद जब मुंबई आईं तो समाजसेवा का भी मंच उनके सामने उपलब्ध था.
पति और परिजनों के सहयोग से बृजलता ने समाजसेवा के क्षेत्र को चुना. गरीबों की मदद से इसकी शुरूआत हुई. पर्व-त्यौहार या किसी अन्य अवसर पर जो कुछ बन पाता था उससे गरीबों की मदद करती थीं.
बृजलता का यह सेवा भाव समय के साथ जुनून बनता चला गया और वे एक-एक कर कई संगठनों से जुड़ गईं. अब उनका फलक और विस्तृत हो गया. इसके बाद महिलाओं को सशक्त करने के काम को हाथ में लिया. असहाय महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए इन्होंने उनके प्रशिक्षण पर ध्यान रखा. सिलाई-कढ़ाई का विकल्प लिया. आज भी ये ऐसी महिलाओं को सिलाई मशीन उपलब्ध करवाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने में सहयोग कर रही हैं.
बृजलता वर्मा मानती हैं कि समाज में विधवा विवाह को मान्यता देकर ही महिलाओं की सच्ची सेवा की जा सकती है. इसीलिए वे विधवा विवाह को अभियान का शक्ल दे रही हैं. उनका मानना है कि इस कुरीति के खत्म हो जाने से महिलाओं को नई दिशा मिलेगी. वे मजबूत होंगी तब हर किसी का भला होगा.
दहेज प्रथा को भी वे देश और समाज के विकास में बड़ा अवरोध मानतीं हैं. इसीलिए सामूहिक विवाह के आयोजन को बढ़ावा देने का प्रयास भी करतीं हैं और इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा भी लेतीं हैं. उनका कहना है कि परिचय सम्मेलन और सामूहिक विवाह के आयोजन से न सिर्फ दहेज जैसी कुरीति पर चोट पड़ती बल्कि समाज के लोगों पर सहज तरीके से रिश्ता ढूंढने और तय करने में मदद मिलती है.
बृजलता वर्मा मानवाधिकार की भी प्रबल पैरोकार हैं. वे मानवाधिकार संगठन से जुड़ी हुई हैं. और लोगों के बीच इसे लेकर जागरूकता भी फैला रही हैं.
समाज के लिए इनका संदेश बहुत स्पष्ट है. इनका कहना है कि किसी भी कुल, गोत्र या क्षेत्र का स्वर्णकार हो उसे अपनी एकजुटता पर पूरा ध्यान देना होगा. समय की यही मांग है. खंड खंड में बंटे रहने से कोई फायदा नहीं होने वाला. आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा संगठन बने जिसका मूलमंत्र हो सबका साथ सबका विकास-सबका प्रयास व सबका सरोकार.
हालांकि उनका यह भी मत है कि हम सभी को सर्वसमाज को साथ लेकर चलने में यकीन करना चाहिए. स्वर्णकारों की भलाई के लिए काम जरूर किए जाएं लेकिन समाज के सभी वर्ग के लोगों को आगे बढ़ाने में हम जितना कर सकें हमें उतना करना चाहिए.
बृजलता वर्मा बतातीं हैं कि इसी सिद्घांत पर अमल करने के लिए वे स्वर्णकार समाज के अलावा दूसरे समाज के संगठनों से भी जुड़ी हैं. राष्ट्रवाद में उनका पूरा यकीन है. भारत को विश्व गुरू बनाने के सपने को हकीकत बनाने में अपना योगदान भी सुनिश्चित करने में शिद्दत से जुटीं हैं
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