कपिलदेव ठाकुर
रांची: आभूषण कारीगरों के सामने पिछले दो साल से तरह-तरह की चुनौतियां और परेशानियां आ रही हैं. काम कम हो गया है. आय के नए स्रोत मिल नहीं रहे हैं. नतीजा यह है कि परिवार चलाने के लिए इन कारीगरों को पलायन का रास्ता अख्तियार करना पड़ रहा है.
आभूषण कारीगरों में से कोई अपने इस पुश्तैनी धंधे से पलायन कर रहा तो कोई गांव-घर छोडक़र नगर-महानगर की ओर रूख कर रहा ताकि जीविकोपार्जन का कोई जरिया मिल सके.
झारखंड, बिहार, बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के कई ज्वेलर्स और आभूषण कारीगरों के संगठनों के लोगों से बातचीत के आधार पर यही लगता है कि यदि सदियों पुरानी आभूषण कारीगरी और कारीगरों को बचाना है तो हम सभी को मिलकर हर जिले में कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) की अवधारणा को मूर्तरूप दिलाने के लिए संकल्प लेकर काम करना होगा.
सीएफसी की स्थापना हर जिले में करानी होगी और उसका कामकाज एक जिला-एक प्रोडक्ट होना चाहिए. इस अवधारणा पर काम करने से सभी कारीगरों को अपने गृह कार्यस्थल के नजदीक ही रोजगार के अवसर मिलेंगे. सरकार प्रदत्त सभी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा और उत्पादों में विविधता रहने से हर सीएफसी को बाजार तलाशने में भी सहुलियत होगी.
इसकी शुरूआत से पहले जरूरी है कि सीएफसी को लेकर व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जाए. बड़े शहरों या यों कहिए कि प्रमंडलस्तर पर कार्यशाला-बैठक आयोजित कर इस बारे में मंथन किया जाए. कारीगरों को बताया जाए कि सीएफसी उनके लिए किस तरह से फायदेमंद साबित हो सकता है.
सीएफसी में लगाई जाने वाली अत्याधुनिक मशीनों के बारे में भी जानकारी साझा की जानी चाहिए. कारीगरों को यह भी मालूम होना चाहिए कि उन्हें आभूषण बनाने के लिए माल कहां से मिलेगा और उत्पादित आभूषणों का बाजार कैसा रहेगा.
यदि आभूषण कारीगरों को यह भरोसा दिला दिया जाए कि सीएफसी के जरिए उनकी तरक्की का रास्ता खुल सकता है तो वे भी कंधा से कंधा मिलाकर इस मुहिम को अंजाम तक पहुंचाने में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे.