रांची : स्वर्णकार कारीगरों की दिशा व दशा को लेकर सोनार संसार डॉट इन ने जिस विमर्श श्रृंखला का शुभारंभ किया है उसका तहे दिल से स्वागत है. पहली बार स्वर्णकार कारीगरों की स्थिति सुधारने की दिशा में इस तरह की पहल की गई है. स्वर्णकार समाज के लिए यह खुशी की बात होनी चाहिए कि सोना-चांदी उद्योग को भी हस्तशिल्प का दर्जा प्राप्त हो चुका है. इसलिए अब इस दर्जा का फायदा उठाकर सही रूप और संदर्भ में स्वर्णकार कारीगरों की भलाई के लिए काम होना चाहिए. हमें यह जानना चाहिए कि यह दर्जा मिल जाने से आभूषण विक्रेताओं को भी हस्तशिल्प उद्योग के नियमों का लाभ मिलने लगा है.
आभूषण बनाने में मशीनों का उपयोग नहीं करने की प्रक्रिया ही हस्तशिल्प का मूल आधार है. इसीलिए मशीन का उपयोग किए बगैर आभूषण निर्माताओं को केंद्रीय हस्तशिल्प मंत्रालय से एक पहचान पत्र दिया जाता है जिसके कई फायदे हैं.
परंपरागत स्वर्णकार कारीगरों की यह शिकायत रहती है कि वे बेहतरीन हस्तकला का इस्तेमाल कर बेजोड़ आभूषण बनाते हैं लेकिन उसका उचित मान-सम्मान नहीं मिलता है. जबकि सोने-चांदी के आभूषण में वे सभी गुण मिलते हैं जो हाथ से बनाए जाने वाले उत्पादों में पाए जाते हैं.
अगर कोई उद्योग हस्तशिल्प के दायरे में आ जाता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा टैक्स में छूट और कारोबार को बढ़ाने के लिए बैंकों से मिलने वाले कर्ज में दिखता है.
स्वर्णकार आभूषण कारीगरों की बेहतरी के लिए अब जरूरी है कि हस्तशिल्प का दर्जा मिलने से जो सुविधाएं मिलती हैं उनका इस्तेमाल किया जाए. बैंकों से लोन दिलाकर, कारीगरों को कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराई जाए बल्कि उनके हुनर को विकसित करने के लिए भी कार्य हों. बड़ी बात यह कि स्वर्णकार समाज की जो समृद्ध विरासत है उसका भी संरक्षण हो सकेगा. खुशी की बात यह है कि आज भी अपने देश में 40 प्रतिशत से ज्यादा आभूषण हाथ से ही बनाए जाते हैं. इनके निर्माण में देशी औजारों का प्रयोग किया जाता है.
इसीलिए अब स्वर्णकार कारीगरों की भलाई के लिए हस्तशिल्पी के दायरे में मिलने वाली तमाम सरकारी सुविधाओं का लाभ इन्हें दिलाया जाए.
प्रदीप कुमार रांची स्थित अलका ज्वेलर्स के संचालक हैं और स्वर्णकार समाज समेत आभूषण कारोबारियों के संगठन से जुड़े हर कार्य में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं