Sunday, January 19, 2025
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    रूस-यूक्रेन की वजह से हीरों के शहर सूरत का हाल बेहाल, तीन लाख कारीगरों के सामने रोजगार का संकट

    नई दिल्ली : रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्घ से हीरों के शहर की पहचान रखने वाले गुजरात के सूरत का हाल बेहाल हो गया है. सप्लाई बाधित हो जाने की वजह से हीरों को तराशने का काम लगभग बंद हो चुका है. इस कारण करीब तीन लाख हीरा आभूषण कारीगरों का रोजगार खतरे में पड़ गया है.
    स्थिति यह बन गई है कि सूरत शहर के अलावा सौराष्टï्र के ग्रामीण इलाकों में स्थित अनेक प्रोसेसिंग और पॉलिसी यूनिट्स को भी काम मिलना बंद हो चुका है. इन यूनिट्स में छोटे-छोटे आकार वाले हीरों को तराशने का काम होता है जबकि सूरत शहर में बड़े आकार के हीरों की प्रोसेसिंग होती है.
    रूस और यूक्रेन का युद्घ जैसे ही शुरू हुआ वैसे ही सूरत पर इसका असर दिखने लगा. हीरों की आवक कम होने के कारण पहले कारीगरों के काम के घंटे घटाए गये बाद में इन लोगों को सप्ताह- 15 दिन की छुट्टी दी जाने लगी और अब इन लोगों को साफ संदेश दे दिया गया है कि उन्हें देने के लिए फिलहाल कोई काम नहीं है. ऐसे में करीब तीन लाख हीरा आभूषण कारीगरों का रोजगार खतरे में पड़ गया है.
    वैसे पूरे गुजरात के हीरा कारोबार की बात की जाए तो मोटे तौर पर किए गए आंकलन के अनुसार इससे 15 लाख वर्कर जुड़े हुए हैं जिनका रोजगार प्रभावित हो रहा है.
    इस तरह संकट में पड़ा हीरों का कारोबार
    युद्घ शुरू होने के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए. इस कारण हीरे और दूसरे रत्नों को रूस से आयात करना भारत समेत अन्य देशों के लिए मुश्किल हो गया. दुनिया में हीरा खनन का काम करने वाली सबसे बड़ी कंपनी का नाम अलरोसा है. इसमें रूस सरकार की भी हिस्सेदारी है. गत आठ अप्रैल को इस कंपनी पर भी अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिया. इसी वजह से सूरत में भी हीरों की सप्लाई रूक गई है. अब कारोबारी दक्षिण अफ्रीका और घाना से हीरा मंगाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन इससे स्थिति में सुधार के संकेत नहीं हैं. ्र
    यही कारण है कि गुजरात डायमंड वर्कर्स यूनियन ने सरकार से दस करोड़ रुपये का राहत पैकेज मांगा है ताकी जिन लोगों का रोजगार संकट में फंसा है उन्हें मदद मिल सके.
    अब आपको बताते हैं कि सूरत को हीरों का शहर क्यों कहा जाता है?
    1960-70 के दशक में सूरत को डायमंड सिटी की पहचान मिल गई थी. दुनिया के नब्बे प्रतिशत हीरे सूरत में ही तराशे और पॉलिश किए जाते हैं. शायद यही कारण है कि यह मान्यता वैश्विक स्तर पर अपनी खास पहचान बना चुकी है कि अगर कोई हीरा सूरत से होकर नहीं गुजरा है तो उसे हीरा नहीं कहा जा सकता.

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