विपिन भाई अडेसरा.झारखंड-जमशेदपुर के प्रमुख कारोबारी. प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान केशवजी छगनलाल ज्वेलर्स के मार्गदर्शक. झारखंड ज्वेलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष. सिंहभूम चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज समेत कई प्रमुख संस्थाओं व संगठनों से जुड़ाव. स्वर्णकार समाज के साथ-साथ अन्य तबकों-वर्गों के विकास को भी हमेशा तत्पर. जीवन के 70 वां बसंत देखने की राह पर आगे बढ़ रहे विपिन भाई अब समाज सेवा को दे रहे विशेष प्राथमिकता. विपिन भाई ने स्वर्णकार समाज की ऑनलाइन पत्रिका सोनार संसार डॉट इन के साथ बातचीत में समाज के सामने की चुनौतियों व उसके विकास को लेकर की अपने मन की बात. प्रस्तुत है संपादित अंश:
जैन धर्म में स्वर्ण व्यवसाय को सबसे अच्छे व्यवसाय की उपमा दी गई है. मुझे खुशी इस बात की भी है कि सोनार संसार डॉन इन के माध्यम से मैं अपने समाज के लोगों से नये रूप में मुखातिब हूं. मैं गुजरात राज्य का मूल निवासी हूं. गुजरात में गठित हुई संस्था श्री अखिल हिंद श्रीमाली सोनी महामंडल सोनार जाति के सर्वांगीण विकास के लिए पिछले करीब 70 साल से सक्रिय है. इसके ट्रस्टी के रूप में भी मेरी सेवा समाज को मिलती आ रही है.
वैसे तो मैं व्यक्तिगत रूप से जाति में भेदभाव के खिलाफ हूं. सभी जातियों के बीच परस्पर प्रेम व सद्भाव का हिमायती हूं. लेकिन मेरी दृढ़ मान्यता है कि किसी दूसरी जाति से भेदभाव किए बगैर अपनी जाति के विकास के लिए किया जाने वाला कार्य समाज हित में ही होता है. सोनार संसार डॉट इन ऐसे ही अच्छे कार्य का वाहक बने, यही कामना है.
सोनार संसार डॉट इन के माध्यम से सोनार जाति के विकास को लेकर अपने मन की बातों को मैं सामने लाना चाह रहा. हम सबों के सामने सबसे पहला सवाल यह है कि हम कौन है? हमारे लिए गौरव की बात है कि हम भगवान विश्वकर्मा के वंशज हैं. हमारी जाति में 52 गोत्र होते है. सोनारों की कला (स्वर्णशिल्पी) का इतिहास दो हजार साल से भी ज्यादा पुराना है. स्वर्ण या चांदी को आभूषणों में तब्दील करने की कला ही सोनारों की थाती है. यह कला भारतीय संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है. इसके बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती. समझा जा सकता है कि अपने देश की संस्कृति के विकास में सोनार जाति की कितनी अहम भूमिका है और आगे भी रहेगी.
कहा जाता है
You can take Gold from Indian
but you cannot take Indian out of Gold.
सदियों गुजर जाने के बाद कोई संस्कृति या परंपरा मजबूत रूप में सामने आती है. सोनार जाति की संस्कृति भी इसी तरह के लंबे सफरनामे का प्रतिफल है. आज हम जिस स्वर्ण संस्कृति को देख, भोग रहे हैं उसका निर्माण हमारे पूर्वजों के तप, तपस्या और कड़ी मेहनत की बदौलत सदियों की सतत साधना की बदौलत संभव हो सका है. अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाते हुए समय के साथ व्यापार को बढ़ाना हमारा धर्म भी है, मौलिक अधिकार भी है, समय की मांग भी है और भविष्य की जरूरत भी है.
आज भी सोना सारी दुनिया में सर्वमान्य चलन (करेंसी) के रूप में जाना-माना जाता है. यानी सोना जहां भी जैसा भी हो, सोना ही होता है और आप जब चाहें, जहां चाहें इसके जरिए कुछ भी खरीद सकते हैं. आज भी भारत के गांवों में सोना एटीएम मशीन की तरह है. ग्रामीण इलाकों में जब किसी व्यक्ति को आकस्मिक पैसे की जरूरत पड़ती है तो उसे अपने पास रखे सोने से बड़ा संतोष और आत्मबल मिलता है कि जब चाहेगा उस सोने के जरिए अपनी आर्थिक जरूरत को पूरा
कर लेगा.
समय के साथ बदलें हम :
अपनी कला और संस्कृति को बचाने के लिए हमें समय के हिसाब से बदलना होगा, सुधरना होगा. समय के साथ चलकर ही हम अपनी संस्कृति बचा पायेंगे और अपनी सदियों से चली आ रही विशिष्टï पहचान को भी कायम रख सकेंगे. ऐसा तभी संभव हो पायेगा जब हम हमेशा परिवर्तन के लिए तैयार रहेंगे. परिवर्तन को अंगीकार करेंगे. परिवर्तन का अभिनंदन करेंगे क्योंकि जो समय के साथ परिवर्तन नहीं करते हैं वे पीछे छूट जाते हैं. उनकी पहचान खत्म हो जाती है. अस्तित्व भी विलुप्त हो जाता है. इसलिए समय के साथ बदलाव को अपनी आदत में शुमार करना ही होगा.
लेकिन सवाल उठता है कि यह परिवर्तन होगा कैसे? बदलते जमाने के दौर में सोनार जाति के लोग अपनी पहचान और विशिष्टïता को किस तरह से बचाकर रखेंगे? इसके लिए उन्हें करना क्या होगा? गहन मंथन, व्यापक विचार-विमर्श और सुदीर्घ अनुभव के आधार पर मुझे लगता है कि सोनार जाति से जुड़े हर व्यक्ति को निम्नलिखित बातों पर अमल करना ही होगा. इन बातों को सफलता मंत्र के रूप में आत्मसात करना होगा.
शिक्षा पर सर्वाधिक जोर :
अपने आप को शिक्षित करें. परिवार को शिक्षित करें. परिचित को शिक्षित करें. नई पीढ़ी को समय के हिसाब से शिक्षा दें. हमारी कोशिश यह रहे कि नई पीढ़ी को इस तरह से शिक्षा-दीक्षा मिले कि वह देश दुनिया से भी कदमताल करे और अपनी परंपरा, अपने व्यापार, अपनी कला और अपनी संस्कृति को समझे. उसकी रक्षा और विकास के लिए हमेशा तत्पर रहे.
नैतिकता को करें नमन :
नैतिकता के बिना जीवन सफल नहीं होता। इसे अपने जीवन का अंग बनाना होगा. जीवन में पारदर्शिता को अपनाना होगा. स्वर्ण कारोबार के लिए भी नैतिकता और पारदर्शिता काफी अहम है. हमें गुणवत्ता के साथ कतई छेड़छाड़ नहीं करनी होगी. यही गुणवत्ता हमारी साख है. यही हमारी पहचान है. यही हमारे कारोबार का आधार है और यही हमारी सफलता का राज भी है.
कला और फैशन का संगम :
बदलते जमाने के साथ हमारी सदियों पुरानी परंपरागत कला का हर रोज बदलने वाले फैशन के साथ कड़ी प्रतिस्पद्र्धा हो रही है. दोनों के बीच संतुलन साधना चुनौती भी है और जरूरत भी. एक तरह से देखा जाए तो यह हमारे कारोबार के लिए भी चुनौती है. हमें बीच का रास्ता अपनाना होगा. अपनी कला को भी बचाना है और फैशन का भी स्वागत करना है. किसी एक को बचाने के चक्कर में दूसरे को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. अपने पूर्वजों से मिले व्यावहारिक ज्ञान और संस्कार के आधार पर हमें कला और फैशन के बीच समन्वय बनाना होगा. संतुलन साधकर चलना होगा.
एकजुटता सर्वोपरि :
किसी भी जाति-समाज की सफलता के लिए एकजुटता सर्वोपरि होती है. एकजुट होकर कोई भी समाज या जाति कुछ भी कर सकता है कुछ भी पा सकता है. कुछ भी लक्ष्य निर्धारित कर सकता है और उसे हासिल भी कर सकता है. सोनार जाति के लिए एकजुटता काफी अहम है. हमारी जाति और हमारे कारोबार के सामने आ रही चुनौतियों का डटकर मुकाबला करने और विजयश्री का ताज पहनने के लिए यह एकजुटता बहुत ही जरूरी है. एकजुट होकर काम करने से हम अपनी बातों को सरकार तक पहुंचा सकते हैं. मनवा सकते हैं.
आज हम करीब एक दशक पहले की एक घटना का उल्लेख करना चाहते हैं. 2012-13 के आम बजट में आभूषणों पर लगाए गए एक्साइज ड्यूटी के विरोध में हम जिसतरह एकजुट हुए और जमशेदपुर समेत पूरे देशभर में जैसा आंदोलन किया वह अपने आप में एक बड़ा जीवंत उदाहरण रहा है. अपनी एकजुटता की बदौलत ही हम उस समय तत्कालीन केंद्र सरकार को अपनी बातें मनवा सके और सरकार को आभूषणों पर टैक्स प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा था. फिर सरकार से ही नहीं असामातिक तत्वों से लडऩे के लिए भी यह एकजुटता बहुत जरूरी है. आए दिन असामाजिक तत्व किसी न किसी रूप में हमारे कारोबार को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं. यदि हम एकजुट रहेंगे तो ऐसे तत्व हमें परेशान करने से पहले सौ बार सोचेंगे.
समाज की भलाई के लिए करें काम :
हम पूरे समाज की भलाई के लिए करें काम. यदि दूसरी जातियों, समुदायों या धर्मों के लोगों के साथ सौहार्द नहीं रहेगा तो समाज अशांत रहेगा. जब समाज अशांत रहेगा तो सिर्फ जाति विशेष का न तो विकास संभव है और न ही जाति विशेष के लोगों को सुकुन ही रहने वाला है. ऐसे में जरूरी है कि ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं करने दें. सबको इज्जत और सम्मान दें. समाज की भलाई में अपना पूरा योगदान दें. ऐसा करके ही हम सामाजिक व्यवस्था को बनाए रख सकते हैं।
कहा गया है-
Through without action is abortion, Action without through is fooly.
इसीलिए हमें कथनी को करनी में बदलने का संकल्प लेना होगा.
तो आइए अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए हम आगे बढ़ें. हमें तो बनाना है इतिहास. हमें चलना ही होगा समय के साथ. यदि समय के साथ अपने आप को नहीं बदलेंगे तो हम खुद बन जायेंगे इतिहास. आप बनना चाहेंगे इतिहास? नहीं न? तो करिए सोनार संसार डॉट इन से संवाद और सामने लाइए अपनी विशिष्टï पहचान.