asd
Thursday, December 5, 2024
More
    No menu items!

    Latest Posts

    समाज की मुख्य धारा में स्थापित होने के लिए स्वर्णकारों के पास सबकुछ, सिर्फ पवित्र भाव से संकल्प लेने भर की आवश्यकता : कपिल देव ठाकुर

    कपिलदेव ठाकुर स्वर्णकार समाज से आते हैं. झारखंड के रामगढ़ कोयलांचल में बचपन बीता, पढ़ाई लिखाई के बाद कारोबार को करियर बनाया. चाहते तो 1970 के दशक में अच्छी सरकारी-गैरसरकारी नौकरी मिल जाती. पर कभी इसलिए ध्यान नहीं दिया क्योंकि किसी की चाकरी की जगह अपने मन की करने की ठान जो ली थी. इरादा मजबूत था. संकल्प का भाव पवित्र था. इसलिए तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए कारोबार के क्षेत्र में अपनी साख भी बनाई व पहचान भी.

    फिलहाल झारखंड की राजधानी रांची को केंद्र बनाकर कारोबार को नया फलक प्रदान करने में शिद्दत से जुटे हैं. लेकिन सिक्के के दूसरा पहलू यह भी है कि समाज खासकर स्वर्णकार समाज के लिए बहुत कुछ करने का सपना भी पाले हुए हैं. लंबे समय से. प्रचार-प्रसार से दूर रहते हुए समाज सेवा के अपने मिशन को आगे बढ़ाने में इनकी सक्रियता हमेशा कायम रहती है. संस्था-संगठन की सियासी दुनिया से सम्मान के साथ दूरी बनाकर चलनेवाले कपिल देव ठाकुर जी के मन में हमेशा यह भाव बना रहता है कि कैसे स्वर्णकार समाज के लोगों के मन में स्वत: तरीके से एकजुटता का भाव जगे? कैसे इस समाज के कमजोर तबके को सहयोग कर मजबूती प्रदान की जाए और कैसे विकास की राह में आने वाले अवरोधों को दूर किया जाएगा. स्वर्णकार समाज की ऑनलाइन पत्रिका सोनार संसार डॉट इन ने स्वर्णकार समाज की संवेदनशील हस्ती कपिल देव ठाकुर से विस्तार से इंटरव्यू लिया.

    प्रस्तुत है दो-तीन बैठकी में लिए गए लंबे साक्षात्कार का संपादित अंश:


    सोनार संसार: कपिल देव ठाकुर जी. स्वर्णकार समाज की भलाई के लिए हमेशा चिंतन मनन करते हुए प्रत्यशील रहते हैं आप. अपने समाज के एतिहासिक सफर को किस रूप में देखते हैं?

    कपिल देव ठाकुर: स्र्वकार समाज की विकास यात्रा को हम मोटे तौर आजादी की लड़ाई के दौरान से शुरू करते हैं. आजादी से पहले एवं आजादी मिलने तक भारत के अन्य समाजों की तरह स्वर्णकार समाज का रोजगार/व्यवसाय रहन-सहन एवं शिक्षा-दीक्षा जैसी थी उसके बारे में सभी को पता है. उस शासन सत्ता विदेशियों के हाथ में थी और गुलामी की जिंदगी जो हमारे पूर्वजों ने देखी होगी, बहुत ही दर्दनाक रही होगी. गुलामी की बेडिय़ों से पूरा देश जकड़ा हुआ था. उन्हें काटने में देश के दूसरे लोगों के साथ हमारे पूर्वजों ने बराबर की लड़ाई लड़ी. तन-मन धन से सहयोग भी किया. लेकिन अफसोस की बात यह कि आजादी की लड़ाई में स्वर्णकार समाज की भूमिका का कोई प्रमाणिक दस्तावेज समाज के सामने नहीं आ सका.

    सोनार संसार: आज के संदर्भ में स्वर्णकार समाज की क्या स्थिति है?

    कपिलदेव ठाकुर : आज 21वीं सदी के भारत की सामाजिक स्थिति ने हमें यह सोचने को विवश कर दिया है कि हम विकास की मुख्य धारा में कहां खड़े हैं? आजादी से पहले हमारी जो स्थिति थी उसमें कितना और किस हद तक बदलाव हुआ है? क्या आजादी से पहले की स्थिति में आज भी पड़ा हुआ है स्वर्णकार समाज? गहन चिंतन और गंभीर मंथन करने के बाद तो अहसास कुछ इसी तरह का होता है.

    सोनार संसार: इसके लिए आजकी नजर में जिम्मेदार कौन है?

    कपिल देव ठाकुर : आपका सवाल बहुत विचारणीय है. सारगर्भित है और हर संवेदनशील नागरिक को चिंतन-मंनन करने के लिए विवश भी करता है. सवाल तो लाजिमी है कि इसके लिए दोषी कौन है? जिम्मेदारी किसकी है? देश के संविधान में तो कहीं कोई वर्ग भेद है नहीं. हमारे संविधान निर्माताओं ने तो हर व्यक्ति और हर समाज के विकास के लिए सभी रास्ते खुले रखे हैं. विचारों की अभिव्यक्ति की भी आजादी दी है और मौलिक अधिकार भी प्रदान किए हैं.

    सोनार संसार: तो आखिर क्यों अवसर का फायदा उठाने से पिछड़ गया है स्वर्णकार समाज?

    कपिल देव ठाकुर : यदि गहराई से महसूस करें तो आप भी इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि आज के आधुनिक समय में जो इज्जत और मान-सम्मान चाहिए वह स्वर्णकार समाज को हासिल नहीं है. तो आखिर इसका कारण क्या है? यदि गहराई से विचार किया जाए तो हम अपनी सामाजिक व्यवस्था के अंदर उन कमजोरियों या बुराइयों को ढूंढ निकालेंगे जिन्हें दूर कर स्वर्णकार समाज भी मुख्यधारा में बजा सकेगा अपनी अहमियत का डंका, इसके लिए जरूरी है कि हम उन कमियों पर गौर करें जो स्वर्णकार समाज की प्रगति की राह में बड़ा अवरोध हैं.

    सोनार संसार: आप सबसे बड़ा अवरोध किसे मानते हैं?

    कपिल देव ठाकुर: शिक्षा और शिक्षण की कमी को. कहा गया है शिक्षा ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है. अपने निजी जीवन में भी आप देखेंगे तो पाएंगे कि हर सफल व्यक्ति ने शिक्षा को अहमियत दी है. शिक्षा का मतलब सिर्फ नौकरी पाना ही नहीं बल्कि अपने व्यवसाय को बढ़ाना भी होता है. अपने समाज के भीतर संस्कार गढऩा होता है. परिवार के भीतर उन्नति को लेकर तत्परता का भाव जगाना होता है. एक तरह से किसी भी व्यक्ति समाज, वर्ग अथवा देश का सर्वांगीण विकास शिक्षा के स्तर और उसके आधुनिकीकरण पर ही निर्भर करता है. अफसोस के साथ हम बताना चाहते हैं कि स्वर्णकार समाज में शिक्षा का स्तर बहुत नीचे है. इसपर हमें सर्वाधिक ध्यान देने की आवश्यकता है.

    सोनार संसार: शिक्षा के विकास के लिए क्या किया जा सकता है?

    कपिल देव ठाकुर : इस दिशा में हम किसी भी बैनर तले काम कर सकते हैं. अपने समाज के असहाय एवं प्रतिभावान बच्चों की शिक्षा में मदद के लिए हर किसी को संकल्पित होना होगा. हम अपने समाज के महापुरुषों के नाम पर शिक्षण संस्थान भी स्थापित कर सकते हैं. एक कोष बनाकर भी मदद कर सकते है. लेकिन सबसे जरूरी है इसके लिए संकल्प लें.

    सोनार संसार: इस दिशा में बड़ी कमी क्या देखते हैं.

    कपित देव ठाकुर: एकजुटता की कमी. स्वर्णकार समाज भी विभिन्न शाखओं, भाषाओं, वर्गों, गोत्रों और मूलों में बंटा हुआ है. इसी कारण हमारे बीच वैसी एकजुटता आज तक नहीं हो पाई है जैसी होनी चाहिए. अभी तक हम अपने संगठन शक्ति एवं सामाजिक एकता को ताकत के रूप में प्रदर्शित नहीं कर पाए हैं. यही कारण है कि हमारे समाज का स्वरूप छोटे-मोटे वर्गों में सिमट कर रह गया है. यही हमारे पिछड़ेपन का बड़ा कारण है. जिस दिन हम तहे दिल से एकजुट हो जाएंगे और आपस में सहयोग बढ़ा देंगे तो उसी दिन से हमारे समाज की उन्नति का नया अध्याय आरंभ हो जाएगा.

    सोनार संसार: समाज की आर्थिक दुर्दशा दूर करने का कोई खाका है आपके पास?

    कपिल देव ठाकुर : स्वर्णकार समाज की आर्थिक दुर्दशा भी किसी से छिपी हुई नहीं है. आजादी के पहले हमारे समाज ने सोचा था कि स्वतंत्र भारत में खुली हवा में सांस लेकर स्वर्णकार समाज के लोग आगे बढ़ेंगे. सरकारें भी हमारे लिए लाभदायक योजनाएं लाएंगी. लेकिन यह क्या? 1963 में तत्कालीन केंद्र सरकार स्वर्ण नियंत्रण कानून नामक एक ऐसा काला कानून लेकर आई जिसने पूरे स्वर्णकार समाज को हिलाकर रख दिया और उसका दंश आजतक हम भुगत रहे हैं.

    सोनार संसार : इसका क्या असर पड़ा?

    कपिलदेव ठाकुर : पैतृक रोजगार से हमारा पलायन होने लगा. परंपरागत रोजगार से हम विस्थापित होने लगे. हमारे समाज में बेरोजगारी बढऩे लगी. हमारी बड़ी आबादी आर्थिक रूप से कमजोर होती चली गई. कुछ साल पहले आम बजट में भी केंद्र सरकार ने हमारे कारोबार को चौपट कर आर्थिक रूप से बदहाल करने की कोशिश की थी. गनीमत रही कि समय से हम एकजुट हो गए और सरकार की मंशा को नाकाम कर दिया. ऐसी स्थिति कभी भी सरकार की ओर से फिर लाई जा सकती है और इसके लिए हमें तैयार रहना होगा.

    सोनार संसार : कारोबार के सामने आई चुनौैतियों को किस रूप में देखते हैं?

    कपिल देव ठाकुर : 1990 के दशक में देश में आए वैश्वीकरण के दौर ने स्वर्णकारी पेशे के स्वरूप को ही बदल दिया. सोना-चांदी व्यवसाय हस्तशिल्पियों के हाथों से निकलकर मशीनों के हवाले हो गया. हम समय के साथ नहीं चले. कहा जाता है कि जो समय के साथ नहीं चलता वह मुख्यधारा से कट जाता है. इसलिए जरूरी है कि हम अपने कारोबार में आधुनिकीकरण को अंगीकार करें. व्यवसाय में नवीनीकरण का ेआत्मसात करें. स्वर्णकार अपने व्यवसाय को औद्योगिक दर्जा दिलाने के लिए पहल करें और सरकारी योजनाओं का भी लाभ प्राप्त करें. एक बात और. अन्य क्षेत्रों में प्रवेश करने और वहां पर भी अपनी उपस्थिति दमदार तरीके से दर्ज कराने के लिए हमें अपने समाज के युवाओं को आधुनिक समय के साथ कदमताल कराना ही होगा.

    सोनार संसार : असुरक्षा का भाव समाज के लोगों को कैसे प्रभावित करता है?

    कपिलदेव ठाकुर : स्वर्णकार समाज के विकास में उसके सोने-चांदी एवं रत्नों के व्यवसाय की असुरक्षा सबसे बड़ी बाधा रही है. जिन स्वर्ण, रजत व रत्नों का व्यापार स्वर्णकार समाज करता है वे बेशकीमती होते हैं. अत्यधिक कीमत होने के कारण स्वर्णकार एवं उसका स्वर्णकारी पेशा दोनों ही खतरे से खाली नहीं होते हैं. एक तरफ तो हमेशा स्वर्णकारों को धारा 411 के अंतर्गत पुलिस का भय बना रहता है दूसरी तरफ आय दिन स्वर्णकारों के साथ हत्या, डकैती, चोरी और लूटपाट जैसी वारदातें होती रहती है. हमें सोचना होगा कि आखिर असुरक्षा का भाव क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि जब तक हम संगठित होकर अपनी सुरक्षा की पहल नही करेंगे सरकार और प्रशासन हमारी मांगों को गंभीरता से नहीं लेंगे.

    सोनार संसार : अपने समाज में कुछ कुरीतियां भी दिखी हैं क्या?

    कपिल देव ठाकुर : बेशक. स्वर्णकार समाज के पिछड़ेपन का एक कारण यह भी है कि अभी भी हम अंधविश्वास और कुरीतियों की चपेट में हैं. इससे हम टूट रहे हैं बिखर रहे हैं, पहचान खो रहे हैं. अत्यधिक दहेज लेना, नारी शक्ति का अपमान, तलाकों की बढ़ती संख्या और अंतरजातीय विवाह से भी समाज में भारी असंतोष फैल रहा है. इसके लिए भी हमें सोच-विचार कर आगे बढऩा होगा. हमें संकल्पित होना होगा कि हम रूढि़वादी विचारो में बदलाव लाएंगे. समाज के सुख-दुख में भागीदार होंगे. सामूहिक विवाह के आयोजन को बढ़ावा देंगे, बाल विवाह का विरोध करेंगे. विधवा विवाह का समर्थन करेंगे.

    सोनार संसार : सत्ता में भागीदारी से दूरी पर क्या सोचते हैं आप?

    कपिलदेव ठाकुर : स्वर्णकार समाज के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण यह भी है कि हमें अपने हक के हिसाब से सत्ता में भागीदारी नहीं मिली है. आज के समय में कोई भी समाज तभी आगे बढ़ सकता है जब सत्ता में उसकी उपस्थिति दर्ज हो. जो समाज सत्ता में होता है विकास उसी का होता है. हम संख्या बल के लिहाज से तो काफी मजबूत हैं लेकिन अपनी संख्या का राजनीतिक ताकत के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सके हैं आजतक. अब समय है कि हम मिलकर संकल्प लें
    वोट हमारा, राज तुम्हारा नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।
    वोट हमारा, राज हमारा, यही चलेगा, यही चलेगा।

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here

    Latest Posts

    Don't Miss